भारतीय प्रवासी दिवस पर बृहस्पतिवार की रात आठ बजे जूना अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि, राज्य सभा सदस्य अमर सिंह की मौजूदगी में हेमा मालिनी ने नृत्य नाटिका के मंचन की शुरूआत की तो पंडाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। ब्रह्मा के कमंडल से पृथ्वी पर तारणहारिणी गंगा के उतरने से लेकर कलियुग में पापमोचनी के रूप में मोक्ष और उद्धार की अविरल धारा के रूप में प्रवाहित होने तक की गाथा को उन्होंने नृत्य के भावों में पिरोया। यह कार्यक्रम सेक्टर-एक स्थित भव्य गंगा पंडाल में आयोजित किया गया था। इस दौरान सैकड़ों की तादाद में एनआरआई मेहमान भी पहुंचे थे। गणेश वंदना के बाद भगीरथ के तप के बाद ब्रह्मा के कमंडल से पृश्वी पर गंगा के अवतरण का दृश्य मंचित किया गया। अद्भुत दृश्य व प्रकाश संयोजन वाली इस नृत्य नाटिका में कई प्रसंगों पर हेमा मालिनी ने सधे अंदाज में नृत्य की प्रस्तुतियों से लोगों को मुग्ध कर दिया। निर्देशन भूषण का था और वेशभूषा नीता लुल्ला की। पार्श्व गायन किया था सुरेश वाडेकर, कविता कृष्ण मूर्ति, शंकर महादेवन ने। इस नृत्य नाटिका के जरिए हेमा मालिनी ने गंगा के अविरल-निर्मल होने का संदेश दिया। मंचन के बाद हेमा मालिनी ने पत्रकारों से बातचीत में कुंभ के आयोजन को अविस्मरणीय और अद्वितीय बताया।
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