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नाबालिग करार देते हुए दसवीं की मार्कशीट में दर्ज जन्म तिथि को मानना अनिवार्य नहीं है: हाईकोर्ट

किसी को जुवेनाइल मानने के लिए दसवीं की मार्कशीट में दर्ज तिथि को जन्म तिथि मानने के लिए ट्रायल कोर्ट बाध्य नहीं है। जज अपनी कसौटी पर सबूतों को परखने के बाद निर्णय देने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र है। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के जस्टिस राजबीर सहरावत ने यह आदेश फरीदाबाद निवासी गजब सिंह की याचिका को खारिज करते हुए जारी किए हैं। दाखिल की गई याचिका में गजब सिंह ने बताया कि 15 मार्च 2017 को उस पर मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में ट्रायल जुवेनाइल कोर्ट में हो, इसके लिए उसने मजिस्ट्रेट के सामने अर्जी दी थी, जिसे मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था। इसके बाद सेशन कोर्ट में अपील दाखिल की गई, लेकिन वहां भी इसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई। इसमें याची ने दसवीं की मार्कशीट पर पड़ी तिथि को जन्म तिथि मानकर केस जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड में भेजने की अपील की थी। हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि याची ने स्कूल के रिकार्ड में तीन बार जन्म तिथि बदली है। पहले सरकारी स्कूल में दाखिला लेते हुए जन्म तिथि 1996 की बताई। इसके बाद जब नाम काट दिया गया तो प्राईवेट स्कूल में नाम लिखवा कर जन्म तिथि 2003 करवा ली। इसके बाद दूसरे स्कूल में एडमिशन लेते हुए जन्म तिथि 1999 दर्ज करवा दी। ऐसे में यह स्थिति शक पैदा करने वाली है। हाईकोर्ट ने कहा कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के नियमों में अब संशोधन हो चुका है। इसलिए ट्रायल कोर्ट ने सबसे पहले स्कूल में नाम लिखवाते हुए दर्ज जन्म तिथि को सही मानते हुए याची को जुवेनाइल न मानने का फैसला लिया और इसमें कोई गलती नहीं है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि दसवीं की मार्कशीट मानना जज के लिए अनिवार्य नहीं है। वह अपने विवेक और मौजूद साक्ष्यों के आधार पर फैसला देने के लिए स्वतंत्र है।

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