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अयोध्या विवाद:मध्यस्थता के विकल्प पर सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को करेगी फैसला

अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के जरिए सुलझाने के विकल्प पर सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई हुई। कोर्ट ने कहा कि अगले मंगलवार को इस पर फैसला लिया जाएगा कि कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के जरिए सुलझा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 6 सप्ताह के लिए मामले की सुनवाई ट्रांसलेशन पर सहमति के लिए टाल दी। सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को तय करेगा कि अयोध्या मामले समझौते के लिए मध्यस्थ के पास भेजा जाए या नहीं। इससे पूर्व पक्षकारों को कोर्ट को बताना होगा कि वे मामले में समझौता चाहते हैं या नहीं? जस्टिस बोबड़े ने अपनी टिप्पणी में कहा ‘यह कोई निजी संपत्ति को लेकर विवाद नहीं है, मामला पूजा-अर्चना के अधिकार से जुड़ा है। अगर समझौते के जरिए 1 फीसदी भी इस मामले के सुलझने की गुंजाइश हो, तो इसकी कोशिश होनी चाहिए।’ न्यायालय ने कहा, यदि अभी सभी पक्षों को दस्तावेजों का अनुवाद स्वीकार्य है तो वह सुनवाई शुरू होने के बाद उस पर सवाल नहीं उठा सकेंगे। सीजेआई ने कहा कि दस्तावेजों के अनुवाद को लेकर पक्षों के बीच मतभेद पनप रहा है। मुस्लिम पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि उन्होंने अभी तक अनुवादित दस्तावेजों का अध्ययन नहीं किया है। धवन ने कहा कि उन्हें दस्तावेजों के अनुवाद की गुणवत्ता को परखना होगा। न्यायालय ने पक्षों से वह आदेश प्रस्तुत करने को कहा जिसके तहत वे उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर अनुवादित दस्तावेजों पर राजी हुए थे। न्यायालय ने कहा कि हमारे विचार में रजिस्ट्री को निर्देश दिया जाए कि वह दस्तावेजों की अनुवादित प्रतियां सभी पक्षों को उपलब्ध कराए। धवन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला दिया और कहा कि पहले भी मध्यस्थता का प्रयास हुआ था, लेकिन विफल रहा। इस पर न्यायालय ने सुझाव दिया कि यदि एक प्रतिशत भी संभवना है तो मध्यस्थता की जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने पूछा, क्या सभी पक्ष भूमि विवाद को सुलझाने के लिये मध्यस्थता की संभावना तलाश सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने मुस्लिम पक्षों से पूछा कि उन्हें अनुवादों को परखने के लिये कितना समय चाहिये, इसपर धवन ने आठ से 12 सप्ताह का समय मांगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि दस्तावेजों के अनुवाद पर विवाद जारी रहा तो हम इस पर अपना समय बर्बाद नहीं करने जा रहे। राम लला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी. एस. वैद्यनाथन ने कहा कि दिसंबर 2017 में सभी पक्षों ने अनुवादों का सत्यापन कर उन्हें स्वीकार किया था। न्यायालय ने पक्षों से वह आदेश प्रस्तुत करने को कहा जिसके तहत वे उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से दायर अनुवादित दस्तावेजों पर राजी हुए थे।

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